History of Tyagi Brahman Samaj:
Beside the mythological history of Tyagi Gaud Brahmans according to which Raja Janmejay bestowed the ownership and administrative control of entire 2440 villages of Kuru Rajya ie Present Delhi, Haryana, West Uttar Pradesh to the Gaud Brahmans who performed Nag Yajna but refused to accept the Dakshina ie monetary gifts; Tyagi Brahmans have a distinguished recorded history and a glorious past since Mahabharata times.
रोहतक, जींद और भिवानी योधेय भट्ट/मौर्य भट्ट गणराज्य आदिगौड वैदिक समाज के केंद्र थे जो हूण और शक आक्रमण से विस्थापित हुआ और गुप्त वंश, प्रतिहार, हर्षवर्धन के काल मे पुनर्गठित और शक्तिशाली होकर तज्ञ भट्ट (तगा गौड़/ तगा भट्ट) के नाम से जाना गया. यही तगा भट्ट प्रतिहार ( दिल्ली में तिहाड़ के भारद्वाज त्यागी) साम्राज्य के प्रधान मंत्री रहे और अजमेर के चौहान साम्राज्य के प्रधान मंत्री भी मौनिश् गोत्र के त्यागी थे जो 1192 ईस्वी में बिजनौर में नहटोर रियासत बसा कर स्थापित हुए थे.
तगा भट्ट शब्द 1000 ईस्वी के आसपास मंत्री,सेनापति या वरिष्ठ सलाहकार के लिए प्रयुक्त होता था और मुहम्मद गौरी को प्रथम युद्ध मे हराने वाली पृथ्वीराज और सर्व खाप की संयुक्त सेना के सेनापति हरीश चंद तगा ही थे. त्यागी समाज का महाभारत कालीन बड़ा शासन किठोड महलवाला के महिसुर (महि सरा) कश्यप गोत्र (मेरठ मे 84 गाँव) है जिनका वर्णन महाभारत मे है इन्हीं के अधिकार क्षेत्र के कारण क्षेत्र का नाम महिराष्ट्र ( मेरठ ) पड़ा. दूसरा प्राचीन समूह अमरोहा / अमरयोधनपुर ( कुरुवंश के राजा सुयोधन के पौत्र अमरयोधन द्वारा स्थापित) चौधरी भारद्वाज हैं.
तीर्थवाल कौशिक कुल गढ़ मुक्तेश्वर तीर्थ के स्वामी थे जो तिगरी मे 135 ईस्वी में हरयाणा रोहतक के पहरावर शासन से आए थे. आज भी इनकी कुलदेवी का मंदिर गढ़ मुक्तेश्वर मे संस्कृत पाठशाला के बराबर मे हैं. वात्स्यायन ( बस्सयान ) गौतम का केंद्र हापुड़ राजा हरिदत्त द्वारा हरिपुर नाम से 680 ईस्वी में बसाया गया था जो हरियाणा सोनीपत के पास घसौली ( गहसौली / ग्रहस्थावली ) से आए थे और राजा हर्षवर्धन के कुल से थे. धीरे धीरे इनके 84 गाँव यहां स्थापित हुए.
तैमूर को हराने वाली सर्व खाप सेना के उप सेनापति वीर उमराव तगा थे. वीर राम देई तगा महिला सेना की सेनापति थी.
रतनगढ़, बिजनौर रियासत के संस्थापक, मराठा सेना के उत्तरी कमान के प्रमुख श्रीमंत राव जोगा सिंह अत्रि थे जिन्होंने जाट राजा सूरजमल के हत्यारे रूहैलखंड के नवाब नजीबुद्दोला को मारकर उस क्षेत्र मे भगवा झंडा फहराया था और रतन गढ़ रियासत की स्थापना की थी.
1857 की क्रांति के नायक अमर बलिदानी चौधरी जालम सिंह खिन्दोड़ा, चौधरी मोहकम सिंह सोहन्जनी तगान, चौधरी मूल चंद त्यागी खुड्डा और चौधरी शोभा राम महाराव पुर व दादी भगवती देवी तगा थी. त्यागी समाज के सबसे बड़े जमीनदार राजा हर दयाल असोडा रियासत थे जिनके 360 गाँव उत्तर प्रदेश व बिहार मे थे. उन्होंने 1857 की क्रांति को आर्थिक मदद दी और बहादुर शाह जफर को एक लाख रुपए क्रांति की तैयारी के लिए दिए थे. उनके पौत्र चौधरी रघुवीर नारायण सिंह त्यागी का विवाह काशी राज परिवार की पुत्री से हुआ था.
त्यागी समाज मे सबसे प्रभावी राजनेता पूर्व केंद्रीय मंत्री और स्वाधीनता सेनानी श्री महावीर त्यागी ( बिजनौर की रतनगढ़ रियासत परिवार) थे किंतु उत्कृष्ट सांसदों मे महान आर्य समाज नेता पंडित प्रकाशवीर शास्त्री की विद्वत्ता और ओमप्रकाश त्यागी की संगठन कुशलता अद्भुत थी. धारा 370 निरस्त करने का बिल प्रकाशवीर शास्त्री 1959 मे ही संसद मे लाए थे और धर्म रक्षा विधेयक श्री ओमप्रकाश त्यागी 1979 मे लाए थे. आज त्यागी समाज को राजनीतिक चुनौती जाट,राजपूत, सेनी, वैश्य सभी वर्गों से मिल रही है और इनका राजनीतिक आधार काफी सिकुड़ चुका है क्योंकि ये स्वाभिमानी समाज है और वोट प्रपंचों से दूर रहना चाहता है. त्यागी ब्राह्मण समाज मे राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर के अनेक वैज्ञानिक, शिक्षाविद व प्रौद्योगिकी विद के अलावा भारतीय सेना के उच्चाधिकारी हुए है व अभी भी कई कुलपति सेवारत हैं. डॉ आर पी एस त्यागी बेस्ट वेटरनरी सर्जन अवार्ड भारत का वार्षिक दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है जो हिमाचल कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ राजपाल सिंह त्यागी, पूर्व डायरेक्टर रिसर्च, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के नाम पर स्थापित है.
डॉ मान सिंह त्यागी ने यू एस ए से आकर MNIT, इलाहाबाद मे इलेक्ट्रानिक्स विभाग की स्थापना की थी और सेमी कन्डक्टर पर उनकी पुस्तक विश्व भर मे पढ़ाई जाती है. एनएसजी, मानेसर के संस्थापक पुलिस अधिकारी श्री आर डी त्यागी ( रामदेव त्यागी, आईपीएस) मुंबई के पुलिस कमिशनर भी रहे थे. अभी भी श्रीमती अर्चना त्यागी मुंबई की दबंग ज्वाइंट पुलिस आयुक्त हैं जिन पर बॉलीवुड फिल्म मर्दानी बनाई गई थी. एयर चीफ मार्शल शशीन्द्र पाल त्यागी बिजनौर में "राजा का ताजपुर" रियासत के परिवार से सम्बन्धित है.
When Sakas ( Rudra Daman 150 AD) demolished Vedik social structure...By defeating great Yodheya (warrior Vaidik clans) of Haryana however same was regained significantly by Samudragupta and Harshvardhan... With decisive defeats of Sakas and Hunas in North West India.
Rudradaman I - The greatest of the Sakas.
Rudradaman I (130-150 AD) was the greatest Saka ruler from the Western Kshatrapas dynasty (kardamkas). He was the grandson of Chastana, the founder of Kardamka dynasty. The Sakas or the Scythians were the Eastern Iranian nomads who occupied the region of Central Asia and Eastern Europe. Afer the fall of the Mauryan empire a series of invasions took place around 200 BC from the north western frontier of India. Among the various groups that crossed Hindukush and invaded India, Sakas were the second after the Indo Greeks of Bactria. Sakas extended their supremacy over north-western India, conquering the Indo-Greeks and other local kingdoms as far as Mathura.
Rudradaman I sat on the throne in 130 AD and took up the title of Maha-kshtrapa ("Great Satrap"). He greatly expanded his territories and established a vast kingdom. His capital was at Ujjain. Later he adopted Hinduism and became a great patron of Hindu art and culture.
Rudradaman fought many a battle against the Satavahanas (or the Andhras). Satavahana ruler Vashishtiputra Satakarni of Brahmanic clan, in an effort to end the hostilities, married the daughter of Rudradaman. The inscription relating the marriage between Rudradaman's daughter and Vashishtiputra Satakarni appears in a cave at Kanheri. But inspite of the matrimonial alliance, there were two battles between the two, in which Rudradaman defeated the Satavahanas. Rudradaman also conquered the Yaudheya Ganas ( Taga Bhatt) in Haryana, as described in the Girnar inscription : "Rudradaman (...) who by force destroyed the Yaudheyas who were loath to submit, rendered proud as they were by having manifested their' title of' heroes among all Warriors." — Junagadh rock inscription of Rudradaman. As a result of his victories, Rudradaman regained all the former territories previously held by Nahapana, except for the southern territory of Poona and Nasik.
Rudradaman is best known in Indian History for his famous Junagarh Rock Inscription. It is inscribed on a rock near Girnar hill near Junagadh, Gujarat and is dated 150 AD. This inscription, written in Brahmi script, was the earliest record ever written in pure Sanskrit. The inscription not only provides details regarding the military exploits of Rudradaman but also credits him with supporting the cultural arts and Sanskrit literature and repairing the famous Sudarshana dam built by the first Mauryan Emperor Chandragupta. The inscription consists of twenty lines and is written entirely in prose.
आईने अकबरी ने तगा गौड़ जमीनदार के लिए तगा, ब्राह्मण और गौड़ तीनों संज्ञा दी है जैसा उन्हे बताया गया होगा..आज सहानपुर,कीरत पुर जैसी बड़ी रियासत त्यागी परिवारों के हाथ से निकलकर जाटों व अन्य परिवारों के पास है.
अक़बर के समय इंद्री, करनाल के स्वामी तगा ब्राह्मण थे जिन्हें अब सिर्फ ब्राह्मण ही कहते हैं हालांकि आज भी विवाह सम्बन्ध त्यागी व अन्य ज़मींदार ब्राह्मण परिवारो मे ही हैं.
1857 की क्रांति और त्यागी समाज.तत्कालीन मेरठ जिले मे तगा गौड़ तीर्थवाल खाप के 24 गावों ने 1857 मे क्रांति का बिगुल बजा दिया था और अंग्रेजों को पकड़कर मारना शरू कर दिया था जिसका नेतृत्व खिन्दोड़ा के चौधरी जालम सिंह त्यागी कर रहे थे. कुम्हेडा, खिन्दोड़ा ,ग्यासपुर , भनेडा, फिरोजपुर और सुहाना छह त्यागी ज़मिदारो के गाँव बागी गाँव के रूप में चिन्हित किए गए थे और अंग्रेजी आतंक और दमन के शिकार बने.
10 मई 1857 को देशभक्ति से औत प्रोत इन गाँव ने देश के क्रांतिकारियों के साथ कन्धा मिलाया और इन्होने 5 अंग्रेज फौजी अफसरों कैप्टन एफ एंड्रुज, सार्जेंट डब्ल्यू, एमजे पर्सन, आर हेकेट, जे डेटिंग तथा कारपोरल प्रियर्सन को लड़ाई मे मौत के घात उतार दिया. एक अंग्रेज बच निकला जिसने मेरठ जा कर इसकी सुचना दी. तब अंग्रेज कमांडर डनलप ने कुम्हेडा गाँव को तोप से उड़ाने और बाकी गावों को जलाने का आदेश दिया, कुम्हेड़ा में तीन स्त्री अपने पति के बलिदान होने होने पर सती भी हुई थी |
खिन्दोड़ा गाँव की ज़मीदारी में नांगल और झालावा गाँव आते थे अतः खिन्दोड़ा की ज़मीन इस प्रकार बाँट दी गई
1. 3600 बीघा ज़मीन अंग्रेज को बचने के लिए नांगल के दीवान धीवर को दी गई |
2. 1800 बीघा ज़मीन नेकपुर के हुसैनी दरजी को दे दी गई
3. खिन्दोड़ा की बाकी सारी ज़मीन धोलडी के सय्यदो को नीलामी मे दे दी गई थी.
फिरोजपुर गाँव को महल वाला गाँव के ज़मींदार परिवार ने नीलामी मे खरीद लिया था.
भनेड़ा, नेकपुर के मुस्लिम त्यागी भी समाज के साथ क्रांति मे साथ थे.
पास के बड़े गाँव बासौड के कौशिक पिलाना खाप के मुस्लिम त्यागी बागपत तक क्रांति के नेता बनकर उभरे और जाट क्रांतिकारी बाबा शाहमल को साथ लेकर अंग्रेजों को मार कर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था.
हापुड़ क्रांतिकारियों का बड़ा केंद्र बना हुआ था जिसमें 80 साल के लाला हरिराम और भंडा पट्टी के 120 किलो वजन के चौधरी जबरदस्त खान त्यागी का नाम उल्लेखनीय है जिन्हें अंग्रेजों ने सैकड़ों अन्य क्रांतिकारियों के साथ फांसी दी थी. चौधरी जबरदस्त खान ने झटके से फांसी का फंडा तोड़ दिया था जिस से गुस्सा होकर अंग्रेज कर्नल ने रिवालवर से छह गोली मार दी थी. हापुड़ मेरठ क्षेत्र मे क्रांतिकारियों को हथियार आदि के लिए धन की व्यवस्था असोड़ा के चौधरी राजा हर दयाल त्यागी ने की थीधन्य है ये महान क्रांतिकारी और उनके वंशज जिन्होंने अपना सर्वस्व लुटाकर भी देश के सम्मान की रक्षा की थी.
त्यागी ब्राह्मण समाज और ब्राह्मण समाचार पत्रिका...
त्यागी ब्राह्मण सभा का विचार सर्वप्रथम 1889 ईसवी में उठा था, उसी समय बिरादरी के समाचार पत्र के प्रकाशन का भी निर्णय लिया गया और सन 1890 ईसवी में बिरादरी का सबसे पहला पत्र प्रकाशित मुज़फ्फरनगर जिले से हुआ, पत्र का नाम ब्राह्मण समाचार रखा गया था और इसकी भाषा उर्दू थी इसके सर्प्रथम संपादक मुंशी हाकम सिंह मुख्तार थे,फिर सहारनपुर से भी प्रकाशन हुआ जिसके सम्पादक छोटे लाल शर्मा थे उसके बाद मास्टर सालगराम शर्मा जी पत्र के संपादक बने जनवरी 1912 में पत्र मेरठ आ गया और पत्र का नाम बदलकर त्यागी ब्राह्मण हो गया उसके बाद 1928 में पत्र की भाषा उर्दू से बदलकर हिंदी हुई व पत्र का नाम केवल त्यागी रह गया. बाद मे अखिल भारतीय त्यागी ब्राह्मण महासभा की पत्रिका पर सिर्फ सभा का नाम होता था.
त्यागी ब्राह्मण , तगा भट्ट
1891 में अखिल भारतीय त्यागी ब्राह्मण महासभा के गठन के बाद "त्यागी" उपनाम प्रचलित हुआ और तगा ब्राह्मण्य और कुछ भूमिहार बाभन ने भी त्यागी उपनाम लिखना प्रारंभ किया. भारत सर्कार के अभिलेखागार विभाग मे अभी भी तगा शब्द ही है इस जाति के लिए. दूसरा, आईने अकबरी ( 1570 ई)मे तगा और तगा महाल शब्द ही प्रयोग हुए हैं. गाँव खेड़ी तगा, सोहनजनी तगान आदि आज भी हैं. हमारे बाबा की जन्म पत्री मे बिरादरी चौधरी लिखी है, त्यागी नहीं. राव जोगा सिंह (1840 ई) और राव दीवान सिंह के लिए तगा शब्द ही प्रयोग हुआ, त्यागी नहीं. 1857 की लड़ाई के अंग्रेजी रिकार्ड मे तगा शब्द ही प्रयोग हुआ, त्यागी नहीं. सारे ब्रिटिश रिकार्ड मे तगा, तगा चौधरी और तगा भट्ट ही प्रयोग हुआ है.
तगा शब्द प्राकृत भाषा मे विद्वान के लिए प्रयोग होता है जो मंत्री और सेनापति के लिए भी प्रयोग होता था.
तज्ञ भट्ट या तगा भट्ट योधेय ब्राह्मण्य समाज के विद्वान वीरों के लिए प्रयुक्त पुरातन सम्मान पद है जिनहे चौधरी संज्ञा से भी संबोधित किया जाता था।
त्यागी शब्द बलिदान और दान दोनों से जुडा है जो तगा समाज के आधार मूल्य हैँ और ये वीर हूणों, अरबों, गौरी, मुगल और अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध लड़ते रहे। पंजाब के महियाल, बंगाल के सेन भट्ट, गुजरात केअनाविल भट्ट (देसाई) और महाराष्ट्र के चितपावन भट्ट तथा भूमिहार समाज का बड़ा भाग योधेय भट्ट की ही शाखाएं है जिन्होने राज्य विस्तार के लिए अपना स्थान परिवर्तन किया था।
कुछ लोग तगा शब्द को भी नहीं समझते थे क्योंकि उन्हें अर्थ पता नहीं था. तज्ञ शब्द का अपभ्रंश तगा हुआ जो विशेषज्ञ के लिए प्रयोग होता है. साम्राज्यों के मंत्री, सेनापति तगा ऐसे ही होते थे जैसे क्लर्क कायस्थ और पुरोहित ब्राह्मण.
खाप शब्द क्षत्रप से बना है जिसको शस्त्रीय भाषा मे शासन कहा जाता है. गोत्र, उप गोत्र के बाद शासन या खाप आता है. दिल्ली हरयाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे कुल 26 शाखाएं प्रतिहार ब्राह्मण शासन के समय थी जो आज भी हैं किन्तु यहां कुछ शाखाओं के गाँव सीमित हैं और अन्य गाँव राजस्थान या हरयाणा मे ही हैं जो गौड़, पुष्कर्ण समाज के ही अंग हैं.
History - Taga Fort and Landlords